CHEEKH - An Unbearable pain

CHEEKH - An Unbearable pain
काली स्याही जैसी रात में जब तूफ़ान समंदर में उठते हैं | सन्नाटे की कोख़ से अक्सर ज़ुर्म जन्म लिया करते हैं || उसी शहर की जान भी तब मुर्दो की तरह सो जाते हैं | तभी कहीं दूर से किसी मासूम की चीख़ सिमट कर आती हैं || अचानक खुली आँख तब मेरी थोड़ा सा घबराया था | दरवाज़े की दर्रों से देखा तो वो रोयी और...